सभी दुःखों की जननी है आसक्ति

News Desk/The Headline today: विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः । रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते ॥ २-५९॥ श्रीमद भगवद गीता के दूसरे अध्याय में कहे गये यह श्लोक में ‘श्री हरी’, अर्जुन की जिज्ञासा के उत्तर में उसे यह कहते हैं की, इंद्रियों द्वारा विषयों को ग्रहण न करने वाले पुरुष के भी केवल विषय तो…

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